महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक का अंश आज भी मौजूद है।
महाराणा प्रताप की शौर्य गाथाएं कौन नहीं जानता। महाराणा ने युद्ध के मैदान में कई इतिहास रचे और कई राजाओं को पराजित किया। लेकिन उनकी इस जीत में उनका बराबर का हिस्सेदार था उनका एक साथी हम बात कर रहे हैं उनके बहादुर घोड़े चेतक की कहा जाता है कि चेतक बहुत ही समझदार बहादुर और वफादार घोड़ा था। चेतक इतना फुर्तीला और तेज दौड़ा था कि उसकी पैरों की टॉप हाथी के सिर तक पहुंचती थी। और महाराणा हाथी पर बैठे दुश्मन पर वार करते थे।हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना महाराणा प्रताप की सेना से बहुत अधिक थी। और अकबर के पास आधुनिक शास्त्र और हाथी भी थे। लेकिन महाराणा प्रताप के पास था उनका चेतक घोड़ा जो कि बिजली की फुर्ती से भागता था।युद्ध के दौरान चेतक के सर पर हाथी का मुखौटा पहनाया जाता था जिससे शत्रु सेना के हाथी भ्रमित होते थे। युद्ध में चेतक दुश्मन हाथी के सर पर चढ़ जाता था जिससे महाराणा प्रताप को हाथी पर बैठे शत्रु पर आक्रमण करने में आसानी होती थी। हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की जीत के पीछे चेतक का बहुत बड़ा योगदान था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप विजय हुए लेकिन बुरी तरह से जख्मी होने के कारण उन्हें युद्धभूमि छोड़नी पड़ी।
अपना एक पैर कटा होने के बावजूद महाराणा प्रताप को सुरक्षित जगह ले जाने के लिए चेतक घोड़ा बिना रुके 5 किलोमीटर तक दौड़ा। उस समय चेतक ने अपनी जान दांव पर लगाकर 25 फुट गहरी दरिया के ऊपर से कूदकर महाराणा प्रताप की जान बचाई थी।महाराणा प्रताप को सही और सुरक्षित जगह पहुंचाने के बाद ही चेतक ने अपना दम तोड़ा था। हल्दीघाटी के मैदान में आज भी इस बहादुर घोड़े
का सामार्ग बना हुआ है। कहा जाता है कि युद्ध में अपने प्रिय घोड़े और सैनिकों को खोने के बाद ही महाराणा प्रताप नहीं है प्रण लिया था कि जब तक वह मेवाड़ हासिल नहीं कर लेते तब तक वह चैन से नहीं बैठेंगे।चेतक की वफादारी दूसरे राजपूत शासकों से भी बढ़कर थी। दूसरे राजपूत शासकों ने भी कठिन समय आने पर अकबर का साथ दिया लेकिन चेतक अपनी आखरी सांस आने तक अपने मालिक के साथ ही था और युद्ध भूमि से अपने घायल मालिक को अपने साथ लेकर ही आया। महाराणा प्रताप जी का भाला 80 किलो का था और उनकी छाती पर लगे कवच का वजन था 70 किलो उनका भजन भाले कवच दो तलवारों सहित कुल 200 किलो हुआ करता था तो इसी से आप पता लगा सकते हैं की चेतक कितना शक्तिशाली और फुर्तीला घोड़ा था।
एस शक्तिशाली घोड़े की वंशज आज भी जिंदा है और उसका नाम है पदमा पिछले साल महाराष्ट्र के सारंगखेड़ा में आयोजित घोड़े के मेले में चेतक की वंशज प पदमा ने भी भाग लिया।यही नहीं इस मेले का मुख्य आकर्षण भी पदमा ही थी। कई लोगों ने इस घोड़ी को खरीदने की इच्छा भी जताई और इसकी बोली लगाई गई 2 करोड़ लेकिन इसके मालिक ने इसे बेचने से इनकार कर दिया।
तो ऐसा था महाराणा प्रताप जी का घोड़ा चेतक जिस पर कई कवियों ने किताबें भी लिखी हैं। इतिहास में शायद ही किसी जानवर को ऐसा सम्मान दिया गया होगा और ऐसे ही याद किया जाता होगा। महाराणा प्रताप का इतिहास चेतक घोड़े के बिना अधूरा रहेगा।1
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